आप भी तो नही करते है निवस्त्र होकर स्नान अब आप सोच रहे है इसमें क्या बुराई है मित्र, तो आप आज इस लेख से पता चल जाएगा क्यों नही करना चाहिए न...
आप भी तो नही करते है निवस्त्र होकर स्नान
अब आप सोच रहे है इसमें क्या बुराई है मित्र,
तो आप आज इस लेख से पता चल जाएगा क्यों नही करना चाहिए निवस्त्र स्नान ।
मित्रों शास्त्रों में कही गयी बातों का पालन करना ही धर्म मार्ग कहा गया जो शास्त्रों के विपरीत है उसे अधर्म कहते है जैसे निवस्त्र स्नान को धार्मिक मान्यता नही है ।
आप नदी तालाब स्विमिंग पुल तीर्थ आदि में कही इस गलती को तो नही कर रहे
हिन्दू धर्म को कभी-कभी परंपरा का नाम भी दिया जाता है। अब यह धर्म है या एक परंपरा, ये बात पिछले काफी समय से विवाद का विषय रही है और ये विवाद अभी भी बदस्तूर जारी है। खैर हम किसी भी प्रकार के विवाद में ना पड़ते हुए आपको हिन्दू धर्म ग्रंथों में दर्ज कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जो आपके जीवन को सफल बना सकती हैं।
विभिन्न हिन्दू धर्म ग्रंथों में बहुत सी उपयोगी बातों का जिक्र किया गया है, उन्हीं में से कुछ खास बातें या निर्देश हम आपको बताने जा रहे हैं।
आप स्नान करते समय अपने शरीर पर तौलिया या कोई अन्य वस्त्र को लपेटते ही होंगे अगर ऐसा नहीं करते हैं तो आप कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं शायद इसका आपको पता भी नहीं होगा। अगर आप यह जान लेंगे कि आखिर क्यों निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए तो आप चाहे बाथरूम में स्नान करें या कहीं और आप जरूर वस्त्र धारण करके ही स्नान करेंगे।
निर्वस्त्र होकर स्नान करने का परणाम क्या होता है यह जानने से पहले आपको बता दें कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं चीर हरण की लीला में लोगों को समझाया है कि कभी भी कहीं भी बिना वस्त्र धारण किए स्नान नहीं करना चाहिए।
पद्मपुराण और श्रीमद्भाग्वत कथा में चीर हरण की कथा का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि गोपियां अपने वस्त्र उतार कर स्नान करने जल में उतर जाती हैं। भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला से गोपियों के वस्त्र चुरा लेते हैं और जब गोपियां वस्त्र ढूंढती हैं तो उन्हें वस्त्र नहीं मिलता है। ऐसे समय में श्री कृष्ण कहते हैं गोप कन्याओं तुम्हारे वस्त्र वृक्ष पर हैं पानी से निकलो और वस्त्र ले लो।
निर्वस्त्र होने के कारण गोप कन्याएं जल से बाहर आने में अपनी असमर्थता जताती हैं और बताती हैं कि वह निर्वस्त्र हैं ऐसे में वह जल से बाहर कैसे आ सकती हैं। श्री कृष्ण गोप कन्याओं से पूछते हैं जब निर्वस्त्र होकर जल में गई थी तब शर्म नहीं आयी थी। जवाब में गोप कन्या बताती हैं कि उस समय यहां कोई नहीं था, तुम भी नहीं थे।
श्री कृष्ण कहते हैं यह तुम सोचती हो कि मैं नहीं था, लेकिन मैं तो हर पल हर जगह मौजूद होता हूं। यहां आसमान में उड़ते पक्षियों और जमीन पर चलने वाले जीवों ने तुम्हें निर्वस्त्र देखा। तुम निर्वस्त्र होकर जल में गई तो जल में मौजूद जीवों ने तुम्हें निर्वस्त्र देखा और तो और जल में नग्न होकर प्रवेश करने से जल रूप में मौजूद वरुण देव ने तुम्हें नग्न देखा और यह उनका अपमान है और तुम इसके लिए पाप के भागी हो।
यानी श्री कृष्ण कहते हैं निर्वस्त्र होकर स्नान करने से वरुण देवता का अपमान होता है। यह सोचना कि बंद कमरे में आप निर्वस्त्र होकर स्नान कर रहे हैं और आपको कोई देख नहीं रहा है तो आप गलत सोच रहे हैं वहां मौजूद सूक्ष्म जीव और भगवान आपको देख रहे हैं और आपकी नग्नता आपको पाप का भागी बना रही है। लेकिन इन सबसे बढ़कर एक और कारण है जो निर्वस्त्र होकर स्नान करने वाले के लिए नुकसानदायक होता है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि स्नान करते समय आपके पितर यानी आपके पूर्वज आपके आस-पास होते हैं और वस्त्रों से गिरने वाले जल को ग्रहण करते हैं जिनसे उनकी तृप्ति होती है। निर्वस्त्र स्नान करने से पितर अतृप्त होकर नाराज होते हैं जिनसे व्यक्ति का तेज, बल, धन और सुख नष्ट होता है। इसलिए कभी भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए।
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