Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

khojosale.com

Breaking News:

latest

4. नामकरण संस्कार क्यों- naamakaran sanskaar kyon-

  4. नामकरण संस्कार क्यों-  naamakaran sanskaar kyon- इस संस्कार को प्रायः दस दिन के सूतक की निवृत्ति के बाद ही किया जाता है। पारस्कर गृस्यस...

4


 4. नामकरण संस्कार क्यों- naamakaran sanskaar kyon-

इस संस्कार को प्रायः दस दिन के सूतक की निवृत्ति के बाद ही किया जाता है। पारस्कर गृस्यसूत्र में लिखा है-दशम्याख्याप्य पिता नाम करोति । कहीं-कहीं जन्म के दसवें दिन सूतिका का शुद्धिकरण याद्वारा करा कर भी संस्कार संपन्न किया जाता है।

 कहीं-कहीं 100वें दिन या एक वर्ष बीत जाने के बाद नामकरण करने की विधि प्रचलित है। गोभित गृहयसूत्रकार के अनुसार जननादृशराने स्युष्टे शतरात्रे संवारे पा नामधेयकरणम्। नामकरण-संस्कार के संबंध में स्मृति-संग्रह में लिखा है-

आयुर्वर्थोऽभिवृद्धिश्व सिद्धिव्यवडतेस्तथा । नामकर्मफलं स्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभिः ॥

अर्थात् नामकरण संस्कार से आयु तथा तेज की वृद्धि होती है एवं सीकिक व्यवहार में नाम की प्रसिद्धि

से व्यक्ति का अलग अस्तित्व बनता है। इस संस्कार में बच्चे को शहद चटाकर शालीनतापूर्वक मधुर भाषण कर, सूर्यदर्शन कराया जाता और कामना की जाती है कि बच्चा सूर्य की प्रखरता-तेजस्विता धारण करे, इसके साथ ही भूमि को नमन करदेवसंस्कृति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पण किया जाता है शिशु का नया नाम लेकर सबके द्वारा उसके चिरजीवी, धर्मशील, स्वस्थ एवं समृद्ध होने की कामना की जाती है।

पहले गुणप्रधान नाम द्वारा या महापुरुषों, भगवान् आदि के नाम पर रखे नाम द्वारा यह प्रेरणा दी जाती थी कि शिशु जीवन भर उन्हीं की तरह बनने को प्रयत्नशील रहे। मनोवैज्ञानिक तथ्य यह है कि जिस तरह के नाम से व्यक्ति को पुकारा जाता है, उसे उसी प्रकार के गुणों की अनुभूति होती है। जब घटिया

नाम से पुकारा जाएगा, तो व्यक्ति के मन में हीनता के ही भाव जागेंगे। अतः नाम की सार्थकता को समझते हुए ऐसा ही नाम रखना चाहिए, जो शिशु को प्रोत्साहित करने वाला एवं गौरव अनुभव कराने वाला हो।

भारतीय चिंतन के अनुसार आत्मा अजर-अमर है। शरीर नष्ट होता है, किंतु जीवात्मा के संचित संस्कार जन्म दर जन्म अपना प्रभाव दिखाते रहते हैं। जीव कोई भी शरीर धारण करे, उसके पिछले जन्मों के संस्कार उसके साथ लगे रहते हैं। 

बालक किस समय, किस नक्षत्र, राशि आदि में उत्पन्न हुआ, यह सब एक निश्चित विधान के अनुसार होता है। घर का पुरोहित या पंडित बालक के जन्म नक्षत्र, ग्रह, राशि आदि के अनुसार बालक का नामकरण करता है। 

वाल्मीकी रामायण में वर्णित है कि श्रीराम आदि चार भाइयों का नामकरण महर्षि वसिष्ठ ने उनके गुण-धर्मों को देखकर ही किया था। उसी प्रकार ब्रह्मवैवर्त पुराण, भागवत पुराण में भी महर्षि गर्ग द्वारा श्रीकृष्ण का नामकरण उनके गुण-धर्मो के आधार पर करने का उल्लेख है।

नामकरण के तीन आधार माने गए हैं। पहला, जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म होता है, उस नक्षत्र की पहचान रहे। इसलिए नाम नक्षत्र के लिए नियत अक्षर से शुरू होना चाहिए, ताकि नाम से जन्मनक्षत्र का पता चले और ज्योतिषीय राशिफल भी समझा जा सके।

 मूलरूप से नामों की वैज्ञानिकता का यही एक दर्शन है। दूसरा यह है कि नाम जातक के जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक बने और तीसरा यह कि नाम से उसके जातिनाम, वंश, गोत्र आदि की जानकारी हो जाए।


कोई टिप्पणी नहीं