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धनतेरस का महत्व-पूजन-विधि-dhanateras ka mahatv-poojan-vidhi

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धनतेरस का महत्व-पूजन-विधि-dhanateras ka mahatv-poojan-vidhi

धनतेरस पूजन विधि-Dhanteras-2022-pujan-vidhi

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं। जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यम का पूजन करती हैं। इस दिन धन्वन्तरिजी के पूजन का भी विशेष महत्त्व है।

धनतेरस पर क्या होता है-kya-kharide-dhanteras-par-naya-saman-laye

इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा | डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुमकुम लगाना चाहिए। कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावली, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए तथा तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी व अमावस्या की संध्या को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

 धनतेरस कथा-dhanteras-katha

एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया- “क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया भी आती है?"

यमदूत संकोच में पड़कर बोले— “नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया भाव से क्या प्रयोजन?" यमराज ने सोचा कि शायद ये संकोचवश ऐसा कह रहे हैं। अतः उन्हें निर्भय करते हुए वे बोले – “संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा हो तो निडर होकर कह डालो।”

तब यमदूतों ने डरते-डरते बताया — “सचमुच ! एक ऐसी ही घटना घटी थी महाराज, जब हमारा हृदय कांप उठा था।”

“ऐसी क्या घटना घटी थी?” उत्सुकतावश यमराज ने पूछा। “महाराज! हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछुड़कर भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा में चला गया।"

“फिर?”

“वहां के शासक हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन | राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था। ज्योतिषियों ने नक्षत्र | गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। | राजा हेमा के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुफा ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी न पहुंचने गई।

किंतु विधि का विधान तो अडिग होता है। समय बीतता रहा। संयोग से एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर निकल गई औरउसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुवंर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नवपरिणीता का करुण विलाप | सुनकर हमारा हृदय कांप गया। ऐसी सुन्दर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी। वे कामदेव तथा रति से कम नहीं थे। उस युवक को कालग्रस्त करते समय हमारे भी अश्रु नहीं थम पाए थे।"

यमराज ने द्रवित होकर कहा "क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा।”

“महाराज!” एकाएक एक दूत ने पूछा – “क्या अकालमृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?" यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए | कहा – “धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक पूर्ण करने से | अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जिस घर में यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय पास भी नहीं फटकता।”

इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वन्तरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ

धनतेरस कब है?

धनतेरस धन्वंतरि जयंती  22 अक्टूबर

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