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सूर्य नमस्कार (विस्तृत वर्णन)-soory namaskaar (vistrt varnan)

 सूर्य नमस्कार (विस्तृत वर्णन)-soory namaskaar (vistrt varnan)- सूर्य नमस्कार ऐसा योग है जिसको करने के बाद अगर आप कुछ और व्यायाम ना भी कर कर...

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 सूर्य नमस्कार (विस्तृत वर्णन)-soory namaskaar (vistrt varnan)-

सूर्य नमस्कार ऐसा योग है जिसको करने के बाद अगर आप कुछ और व्यायाम ना भी कर करें, तो भी काम चल जाएगा। सूर्य नमस्कार ऐसा योग है जो आपको शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। पौराणिक ग्रंथो में भी सूर्य नमस्कार को सर्वप्रथम बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने भी युद्ध में उतरने से पहले सूर्य नमस्कार किया था। कहते है यह रामायण काल युद्ध आरंभ हो चुका था और अनगिनत शत्रुओं के साथ श्रीराम की वानर सेना के भी कई महारथी शहीद हो गए थे। भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम अपनी आंखों के सामने युद्ध का सारा दृश्य देख रहे थे। तभी उन्होंने सोचा कि यह वही घड़ी है जब वे स्वयं युद्ध के मैदान में उतरकर दुष्ट रावण का सर्वनाश करेंगे।

तभी ऋषि अगस्त्य द्वारा श्रीराम को युद्ध भूमि में जाने से पहले ‘सूर्य नमस्कार’ करने की सलाह दी गई। मान्यता है कि पौराणिक इतिहास में यह पहला सूर्य नमस्कार था, जिसे रामायण ग्रंथ के युद्ध कांड में भी शामिल किया गया है। सम्पूर्ण रूप से सूर्य नमस्कार करने के पश्चात ही श्रीराम दैत्य रावण का वध करने के लिए युद्ध भूमि में उतरे थे।

सूर्य नमस्कार द्वारा सूरज की वंदना और अभिवादन किया जाता है। सूर्य ऊर्जा का स्रोत माना जाता है।

भारत के प्राचीन ऋषियों के द्वारा ऐसा कहा जाता है कि शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न देवताओं के द्वारा संचालित होते है। मणिपुर चक्र (नाभि के पीछे स्थित जो मानव शरीर का केंद्र भी है) सूर्य से संबंधित है। सूर्य नमस्कार के लगातार अभ्यास से मणिपुर चक्र विकसित होता है। जिससे व्यक्ति की रचनात्मकता और अन्तर्ज्ञान बढ़ते हैं। यही कारण था कि प्राचीन ऋषियों ने सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लिए इतना बल दिया।

सौर जाल (यह नाभि के पीछे स्थित होता है, जो मानव शरीर का केंद्रीय बिंदू होता है) को दूसरे दिमाग के नाम से भी जाना जाता है, जो कि सूर्य से संबंधित होता है। यही मुख्य कारण है कि प्राचीन समय के ऋषि-मुनि सूर्यनमस्कार करने की सलाह देते थे, क्योंकि इसका नियमित अभ्यास सौरजाल को बढ़ाता है, जो रचनात्मकता और सहज-ज्ञान युक्त क्षमताओं को बढ़ाने में सहायक होता है। 

सूर्य नमस्कार में 12 आसन होते हैं। इसे सुबह के समय करना बेहतर होता है। सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचरण बेहतर होता है, स्वास्थ्य बना रहता है और शरीर रोगमुक्त रहता है। सूर्य नमस्कार से हृदय, यकृत, आँत, पेट, छाती, गला, पैर शरीर के सभी अंगो के लिए बहुत से हैं। सूर्य नमस्कार सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी अंगो को बहुत लाभान्वित करता है। यही कारण है कि सभी योग विशेषज्ञ इसके अभ्यास पर विशेष बल देते हैं।

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सूर्य नमस्कार के मंत्रो का उच्चारण कैसे करे ?

सूर्य नमस्कार के मंत्रो का उच्चारण करने का सिर्फ एक ही नियम है और वो है कृतज्ञ भाव के साथ मंत्रो का उच्चारण करना। हरेक मंत्र का एक विशेष अर्थ होता है परंतु उस मंत्र के अर्थ की गहराई में उतारना अति आव्यशक नही है।

जैसे की, “ॐ भानवे नमः” का अर्थ है “जो हमारे जीवन में प्रकाश लाता है”। जब आप इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो आप सूर्य के प्रति रौशनी व धरती पर जीवन के लिए कृतग्यता प्रकट करते हैं 

सूर्य नमस्कार की प्रक्रिया के दौरान इन मंत्रों की सूर्य की स्तुति में वंदना की जाती है। यह मंत्र सूर्य नमस्कार के लाभों को और अधिक बढ़ा देते हैं। इनका शरीर और मन पर एक सूक्ष्म परंतु मर्मज्ञ प्रभाव पड़ता है। यह १२ मंत्र जो सूर्य की प्रशंसा में गाये जाते हैं इनका सूर्य नमस्कार करने कि प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

मंत्रो को सूर्य नमस्कार की प्रक्रिया में कैसे जोड़े?

आप सूर्य नमस्कार के मंत्रो का जिव्हा से उच्चारण कर सकते हैं अथवा मन में भी इन मंत्रो का आवाहन कर सकते हैं।

एक सूर्य नमस्कार के चरण के दो क्रम होते हैं- पहला दाएँ पैर के साथ किया जाता है और दूसरा बाएँ पैर के साथ किया जाता है आदर्शतः हमको कम से कम 12 सूर्य नमस्कार प्रतिदिन करने चाहिए परंतु आप जितना भी सहज तरीके से कर सकते हैं उतना ही कीजिए यदि आप 6 सूर्यनमस्कार कर रहे हो तो प्रत्येक नए क्रम में मंत्र का उच्चारण करें। पहला चरण प्रारम्भ करते हुए पहले मंत्र का उच्चारण करें, जब आप दोनों क्रम पूरे करलें तो दूसरा चरण प्रारम्भ करने से पहले दूसरे मंत्र का उच्चारण करें और आगे बढ़ते रहे। इस तरह से आप 12 सूर्य नमस्कार के साथ 12 मंत्रों का उच्चारण कर लेंगे।

यदि आप 12 से कम सूर्य नमस्कार करते हैं, जैसे कि 2 अथवा 4, तो आप प्रत्येक आसन के साथ हरेक मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं। इस प्रकार से आप प्रत्येक आसन के साथ एक मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं।

सूर्य नमस्कार मंत्र क्रम बद्ध

1 प्रणाम आसन 

उच्चारण : ॐ मित्राय नमः

मुद्रा  दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।

अर्थ:  सबके साथ मैत्रीभाव बनाए रखता है।

2 हस्तउत्थान आसन 

उच्चारण: ॐ रवये नमः।

मुद्रा श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।

अर्थ: जो प्रकाशमान और सदा उज्जवलित है।

3 हस्तपाद आसन 

उच्चारण: ॐ सूर्याय नम:।

मुद्रा तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

अर्थ: अंधकार को मिटाने वाला व जो जीवन को गतिशील बनाता है। 

4 अश्व संचालन आसन

उच्चारण: ॐ भानवे नमः।

मुद्रा इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

अर्थ: जो सदैव प्रकाशमान है।

5 दंडासन 

उच्चारण: ॐ खगाय नमः।

मुद्रा श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

अर्थ: वह जो सर्वव्यापी है और आकाश में घूमता रहता है।

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6 अष्टांग नमस्कार 

उच्चारण: ॐ पूष्णे  नमः।

मुद्रा श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

अर्थ: वह जो पोषण करता है और जीवन में पूर्ति लाता है।

7 भुजंग आसन 

उच्चारण: ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।

मुद्रा इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।

अर्थ: जिसका स्वर्ण के भांति प्रतिभा / रंग है।

सूर्यनमस्कार व श्वासोच्छवास

8 पर्वत आसन 

उच्चारण: ॐ मरीचये नमः।

मुद्रा श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

अर्थ: वह जो अनेक किरणों द्वारा प्रकाश देता है।

9 अश्वसंचालन आसन

उच्चारण: ॐ आदित्याय नम:।

मुद्रा  इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

अर्थ: अदिति (जो पूरे ब्रम्हांड की माता है) का पुत्र।

10 हस्तपाद आसन 

 उच्चारण: ॐ सवित्रे नमः।

अर्थ: जो इस धरती पर जीवन के लिए ज़िम्मेदार है।

(10) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

11 हस्तउत्थान आसन

उच्चारण: ॐ अर्काय नमः ।

मुद्रा श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।

अर्थ: जो प्रशंसा व महिमा के योग्य है।

12 ताड़ासन 

उच्चारण: ॐ भास्कराय नमः।

मुद्रा यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहेगी।

सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।

अर्थ: जो ज्ञान व ब्रह्माण्ड के प्रकाश को प्रदान करने वाला है।

इन 12 मंत्रो का उच्चारण आसनो के साथ करना बहुत लाभप्रद है।

सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं। सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वाले रोगियों के लिए वर्जित हैं।

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