7. चूड़ाकर्म संस्कार (मुंडन) क्यों- choodaakarm sanskaar (mundan) kyon- बालक का कपाल लगभग तीन वर्ष की अवस्था तक कोमल रहता है। तत्पश्चात्...
7. चूड़ाकर्म संस्कार (मुंडन) क्यों- choodaakarm sanskaar (mundan) kyon-
बालक का कपाल लगभग तीन वर्ष की अवस्था तक कोमल रहता है। तत्पश्चात् धीरे-धीरे कठोर होने लगता है। गर्भावस्था में ही उसके सिर पर उगे बालों के रोमछिद्र इस अवस्था तक कुछ बंद से हो गये रहते हैं।
अतः इस अवस्था में शिशु के वालों को उस्तरे से साफ कर देने पर सिर में की गंदगी, कीटाणु आदि तो दूर हो ही जाते हैं, मुंडन करने पर बालों के रोमछिद्र भी खुल जाते हैं।
इससे नये बाल घने, मजबूत व स्वच्छ होकर निकलते हैं। सिर पर घने, मजबूत और स्वच्छ बालों का होना मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए आवश्यक है अथवा यो कहें कि सिर के बाल सिर के रक्षक हैं, तो गलत न होगा।
इसीलिए 'चूड़ाकर्म' एक संस्कार के रूप में किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार किसी शुभ मुहूर्त एवं समय में ही यह संस्कार करना चाहिए। चूड़ाकर्म संस्कार से बालक के दांतों का निकलना भी आसान हो जाता है।
इस संस्कार में शिशु के सिर के बाल पहली बार उस्तरे से उतारे जाते हैं। कहीं-कहीं कैंची से वाल एकदम छोटे करा देने का भी चलन है। जन्म के पश्चात् प्रथम वर्ष के अंत तथा तीसरे वर्ष की समाप्ति के पूर्व मुंडन संस्कार कराना आमतौर पर प्रचलित है,
क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार एक वर्ष से कम की उम्र में मुंडन संस्कार करने से शिशु की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है और अमंगल होने की आशंका रहती है। फिर भी कुलपरंपरा के अनुसार पांचवें या सातवें वर्ष में भी इस संस्कार को करने का विधान है।
मान्यता यह है कि शिशु के मस्तिष्क को पुष्ट करने, बुद्धि में वृद्धि करने तथा गर्भगत मलिन संस्कारों को निकालकर मानवतावादी आदशों को प्रतिष्ठापित करने हेतु चूड़ाकर्म संस्कार किया जाता है। इसका फल बुद्धि, बल, आयु और तेज की वृद्धि करना है। इसे किसी देवस्थल या तीर्थस्थान पर इसलिए कराया जाता है, ताकि वहां के दिव्य वातावरण का भी लाभ शिशु की मिले तथा उतारे गए बालों के साथ बच्चे के मन में कुसंस्कारों का शमन हो सके और साथ ही सुसंस्कारों की स्थापना हो सके।
आश्वलायन गृह्यसूत्र के अनुसार-
तेन ते आयुषे वयामि सुश्लोकाय स्वस्तये ।
-आश्वलायन गृह्यसूत्र 1/17/12
अर्थात 'चूडाकर्म से दीर्घ आयु प्राप्त होती है। शिशु सुंदर तथा कल्याणकारी कार्यों की ओर होने वाला बनता है। वेदों में चूड़ाकर्म संस्कार का विस्तार से उल्लेख मिलता है। यजुर्वेद में लिखा है- प्रवृत्त
नि वर्त्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय
रायस्पोषायः सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥
-यजुर्वेद 3/68
अर्थात् 'हे बालका मैं तेरी दीर्घायु के लिए, तुझे अन्न-ग्रहण करने में समर्थ बनाने के लिए, उत्पादन शक्ति प्राप्ति के लिए, ऐश्वर्य वृद्धि के लिए, सुंदर संतान के लिए एवं बल तथा पराक्रम प्राप्ति के योग्य होने के लिए तेरा चूडाकर्म संस्कार (मुंडन) करता हूँ।'
उल्लेखनीय है कि चूडाकर्म वस्तुतः मस्तिष्क की पूजा या अभिवंदना है। मस्तिष्क का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना ही बुद्धिमत्ता है।
शुभ विचारों को धारण करने वाला व्यक्ति परोपकार या पुण्यलाभ पाता है और अशुभ विचारों को मन में भरे रहने वाला व्यक्ति पापी बनकर ईश्वरीय दंड और कोप का भागी बनता है। यहां तक कि अपनी जीवन प्रक्रिया को नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। अतः मस्तिष्क का सार्थक सदुपयोग ही कर्म का वास्तविक उद्देश्य है।
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