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विद्यारंभ संस्कार का महत्त्व क्यों-vidyaarambh sanskaar ka mahattv kyon-

  विद्यारंभ संस्कार का महत्त्व क्यों- vidyaarambh sanskaar ka mahattv kyon- वेदारंभ संस्कार का संबंध उपनयन संस्कार की भांति गुरुकुल प्रथा स...

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  विद्यारंभ संस्कार का महत्त्व क्यों-vidyaarambh sanskaar ka mahattv kyon-

वेदारंभ संस्कार का संबंध उपनयन संस्कार की भांति गुरुकुल प्रथा से था, जब गुरुकुल का आचार्य को यज्ञोपवीत धारण कराकर, वेदाध्ययन करता था। गुरुजनों से वेदों और उपनिषदों का अध्ययन कर तत्त्वज्ञान की प्राप्ति करना ही इस संस्कार का परम बालकप्रयोजन है।

 जब बालक-बालिका का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता है, तब यह संस्कार किया जाता है। आमतौर पर 5 वर्ष का बच्चा इसके लिए उपयुक्त होता है।

 मंगल के देवता गणेश और कला की देवी सरस्वती को नमन करके उनसे प्रेरणा ग्रहण करने की मूल भावना इस संस्कार में निहित होती है। बालक विद्या देने वाले गुरु का पूर्ण श्रद्धा से अभिवादन व प्रणाम इसलिए करता है कि गुरु उस एक श्रेष्ठ मानव बनाए।

विद्यालय

ज्ञानस्वरूप वेदों का विस्तृत अध्ययन करने के पूर्व मेधाजनन नामक एक उपांग-संस्कार करने का विधान भी शास्त्रों में वर्णित है। इसके करने से बालक में मेधा, प्रज्ञा, विद्या तथा श्रद्धा की अभिवृद्धि होती है। इससे वेदाध्ययन आदि में न केवल सुविधा होती है, बल्कि विद्याध्ययन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। ज्योतिर्निबंध में लिखा है-

विद्यया लुप्यते पापं विद्ययाऽयुः प्रवर्धते ।

 विद्यया सर्वसिद्धिः स्याद्विद्ययामृतमश्नुते ॥

अर्थात् 'वेदविद्या के अध्ययन से सारे पापों का लोप होता है, आयु की वृद्धि होती है, सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं, यहां तक कि विद्यार्थी के समक्ष साक्षात् अमृतरस अशन-पान के रूप में उपलब्ध हो जाता है।" शास्त्रवचन है कि जिसे विद्या नहीं आती, उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के चारों फलों से वंचित रहना पड़ता है। इसलिए विद्या की आवश्यकता अनिवार्य है।

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