यहां इनका विस्तार से वर्णन किया गया है। धर्म व्यक्तिगत विषय नहीं है धर्म को जानने के लिए हम शास्त्रों के अधीन है। जो शास्त्र धर्म-अधर्म,...
यहां इनका विस्तार से वर्णन किया गया है।
धर्म व्यक्तिगत विषय नहीं है धर्म को जानने के लिए हम शास्त्रों के अधीन है। जो शास्त्र धर्म-अधर्म, सत्य और असत्य का ठीक-ठीक आचरण मनुष्य मात्र को बतलाता है। केवल वही सनातन धर्म के मूल वैदिक शास्त्र हो सकते हैं। प्रत्येक भारतीयों को केवल उन्ही शास्त्रों का ही अध्ययन एवं पठन-पाठन अपने घरों में करना उचित है। सनातन धर्म का मूल वैदिक साहित्य अत्यंत विस्तृत और प्राचीन है। यह साहित्य चार मुख्य भागों में विभाजित किया गया हैः संहिताएँ, ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद। ये सभी भाग वैदिक ज्ञान के आधारस्तंभ माने जाते हैं। इनका उद्देश्य मनुष्य को धर्म कर्म, और मोक्ष का ज्ञान प्रदान करना है। यहां इनका विस्तार से वर्णन किया गया है।
वेद (संहिताएँ) - सनातन धर्म का मूल धर्म ग्रंथ वेद है।
संहिताएँ वेदों का सबसे प्रारंभिक और मुख्य भाग हैं, जिनमें मंत्रों और स्तुतियों का संग्रह है। जितने भी धर्म ग्रंथ है उनकी उत्पत्ति वेदों से ही हुई है। अतः वेद ही सर्वोच्च है एवं सर्वमान्य है। वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है। इसीलिए इसे श्रुति कहा गया है। सामान्य भाषा में वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेद पुरातन ज्ञान विज्ञान का अपाङ भंडार है। इसमें मानव जीवन की हर समस्या का समाधान है। वेदों में ब्रह्म (ईश्वर) ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम आचार विचार आदि सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है। वेदों की संख्या 4 है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
ब्राह्मण ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ वेदों के व्याख्यान ग्रंथ है। प्रत्येक वेद के साथ एक या अधिक ब्राह्मण ग्रंथ जुड़े हुए हैं:147
ऋग्वेद के ब्राह्मणः ऐतरेय ब्राह्मण, कौशिकी ब्राह्मण
यजुर्वेद के ब्राह्मणः तैत्तिरीय ब्राह्मण (कृष्ण यजुर्वेद), शतपथ ब्राह्मण (शुक्ल यजुर्वेद)
सामवेद के ब्राह्मणः ताण्ड्य ब्राह्मण, जैमिनीय ब्राह्मण
अथर्ववेद के ब्राह्मणः गोपथ ब्राह्मण
आरण्यक आरण्यक वे ग्रंथ हैं जो वानप्रस्थ ऋषियों और साधकों के लिए थे। इनका अध्ययन घर-गृहस्थी छोडकर वन में किया जाता था। आरण्यक ग्रंथ मुख्य रूप में पक्षों और कर्मकांडों के गूढ़ तत्वों को समझाते हैं, जो कि साधारण व्यक्ति की अपेक्षा ध्यान-साधना करने वाले साधकों के लिए होते थे।
प्रमुख आरण्यकः
ऐतरेय आरण्यक (ऋग्वेद से संबंधित)
तैत्तिरीय आरण्यक (यजुर्वेद से संबंधित)
बृहदारण्यक (शुक्ल यजुर्वेद से संबंधित)
उपनिषद - उपनिषद वेदों का दार्शनिक और आध्यात्मिक भाग हैं। इन्हें वेदांत भी कहा जाता है, क्योंकि ये वेदों के अंतिम भाग हैं और ज्ञान, आत्मा, ब्रह्म, और मोक्ष जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उपनिषदों में कर्मकांडों की अपेक्षा ज्ञान और ध्यान को महत्व दिया गया है। इन्हें वेदों का सार कहा जाता है और ये सनातन धर्म के दार्शनिक विचारों की नींव रखते हैं। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 है परंतु 11 उपनिषद ही बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
प्रमुख उपनिषद: ईशावास्योपनिषद, केनोपनिषद, काोपोपनिषद, प्रश्नोपनिषद, मुंडकोपनिषद, मांडूक्योपनिषद, तैत्तरीयोपनिषद, ऐतरेयोपनिषद, छांदोग्योपनिषद, बृहदारण्यकोपनिषद, श्वेताश्वतरोपनिषद
षड्दर्शन शास्त्र - दर्शन शास्त्र गहन गहनता परम सत्य की खोज पर आधारित है। यह वेदों की ही सूक्ष्म ज्ञान को सरल शब्दों में वर्णित करता है। इनकी संख्या 6 है। सांख्यदर्शन ऋषि कपिल, योगदर्शन ऋषि पतंजलि, न्यायदर्शन - ऋषि गौतम, वैशेषिकदर्शन - ऋषि कणाद, मीमांसा दर्शन - जैमिनी, वेदांत दर्शन (ब्रह्म सूत्र) - ऋषि व्यास (बादरायण)148
वेदांग वेदों के अध्ययन और उनके अर्थ को समझने के लिए कुछ अन्य ग्रंथ भी लिखे गए हैं जिन्हें वेदांग कहा जाता है। ये वेदों के सहायक अंग माने जाते हैं:
शिल्प
शिक्षा (उच्चारण विज्ञान)
कल्प (यज्ञ विधियाँ)
व्याकरण (संस्कृत व्याकरण)
निर्वचन (शब्दार्थ और व्याख्या)
छंद (काव्यशास्त्र)
ज्योतिष (खगोल और ज्योतिष विज्ञान)
विशुद्ध मनुस्मृति - महर्षि मनु द्वारा रचित सृष्टि का प्रथम संविधान एवं मानव धर्मशास्त्र।
श्रीमद् भगवत गीता - योगेश्वर श्री कृष्ण द्वारा महाभारत युद्ध में अर्जुन को सुनाया गया संपूर्ण उपनिषदों का सार है। इसे गीतोपनिषद भी कहा जाता है।
इतिहास ग्रंथ - बाल्मीकि रामायण एवं महाभारत।
उपवेदः वेदों के अनुपूरक शास्त्र
उपवेद शब्द का शाब्दिक अर्थ है "सहायक वेद"। उपवेद वेदों के अनुपूरक शास्त हैं, जो जीवन के विभिन्न व्यावहारिक और वैज्ञानिक पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। वेदों में जहां आध्यात्मिक, धार्मिक, और दार्शनिक ज्ञान का संग्रह है, वहीं उपवेद जीवन के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे कि चिकित्सा, संगीत, वास्तुकला और युद्धकला से संबंधित ज्ञान प्रदान करते हैं। चार प्रमुख उपवेद हैं, जो चार मुख्य वेदों से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक उपवेद एक विशिष्ट क्षेत्र पर केंद्रित है और व्यावहारिक जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान प्रदान करता है।
ऋग्वेद का उपवेदः स्थापत्यवेद या शिल्पवेद
स्थापत्यवेद को शिल्पवेद भी कहा जाता है और इसका संबंध निर्माण और वास्तुकला से है। यह उपवेद भवनों, नगरों, यंत्रों और रहने योग्य स्थानों के डिजाइन, योजना और निर्माण के बारे में जानकारी प्रदान करता है। प्राचीन भारतीय सभ्यता में वास्तुशास्त्र और शिल्पविद्या का विशेष महत्व था, जिसमें भवन, घर और नगर नियोजन जैसी विधियों का विस्तार से वर्णन है|
शिल्प वेद के प्रमुख बिंदुः
भवनों और नगरों का निर्माण
यंत्रों और अस्ल शस्त्रों का निर्माण
वस्तुकला के सिद्धांत और नियम
घर, भवन और किलों की संरचना
यह उपवेद जीवन की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक व्यवस्थित एहिकोण प्रस्तुत करता है और समाज को स्थायित्व और समृद्धि प्रदान करता है।
उपवेदः धनुर्वेद
धनुर्वेद युद्धकला और सैन्य विज्ञान का प्राचीन शास्त्र है। इसका संबंध यजुर्वेद से है और यह शस्त्र विद्या, युद्धनीति और सैन्य संगठन पर केंद्रित है। धनुर्वेद में शस्त्रों के प्रकार, उनके उपयोग, युद्ध की रणनीतियाँ और योद्धा के गुणों का वर्णन किया गया है। प्राचीन भारत में धनुर्विद्या की प्रमुखता थी और इसे न केवल शारीरिक कौशल, बल्कि मानसिक संतुलन और अनुशासन का शास्त्र भी माना जाता था।
धनुर्वेद के प्रमुख बिंदुः
शस्त्रों का वर्गीकरण और उपयोग
युद्धनीति और रणनीति
योद्धा के गुण और आचरण
शत्रुओं से रक्षा और आक्रमण के उपाय
धनुर्वेद यह सिखाता है कि कैसे युद्धकला को नैतिकता और अनुशासन के साथ संतुलित रखा जाए, जिससे न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा बल्कि राष्ट्र की रक्षा भी सुनिश्चित हो। धनुर्वेद आज उपलब्ध नहीं होता है।
सामवेद का उपवेदः गंधर्ववेद
गंधर्ववेद संगीतशास्त्र और नाट्यकला का शास्त्र है। यह उपवेद सामवेद से जुड़ा हुआ है, जो स्वयं भी संगीत और छंदों पर आधारित है। गंधर्ववेद में संगीत के स्वर, ताल, राग-रागिनी और नृत्यकला का वर्णन मिलता है। भरतमुनि का प्रसिद्ध नाव्यशास्त्र भी इसी का अंग है। गंधर्ववेद के अनुसार, संगीत और नृत्य न केवलमनोरंजन का साधन है बल्कि आध्यात्मिक साधना और मानसिक शांति का माध्य भी हैं।
गंधर्ववेद के प्रमुख बिंदुः
संगीत के सप्त स्वर
राग और रागिनी का महत्व
नृत्य और नाट्यकला के सिद्धांत
संगीत का मानसिक और आध्यात्मिक प्रभाव
गंधर्ववेद यह सिखाता है कि संगीत और कला जीवन को संपूर्ण और संतुलित बनात हैं। यह उपवेद कलात्मक और सांस्कृतिक विकास का माध्यम है, जो समाज में सौदों और सद्भाव का संचार करता है।
अथर्ववेद का उपवेदः आयुर्वेद
आयुर्वेद संसार की सबसे पुरानी और व्यापक चिकित्सा प्रणाली है। यह उपवेट शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करने का शास्त्र है और इसना संबंध अधर्ववेद से है। आयुर्वेद में रोगों के उपचार के साथ-साथ स्वस्थ और संतुति जीवन जीने के नियमों का विस्तृत वर्णन है। यह चिकित्सा प्रणाली प्राकृतिक तत्वों जैन पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश पर आधारित है। आयुर्वेद का मुख्य उद्देश केवल रोगों का उपचार नहीं, बल्कि एक स्वस्थ और दीर्घायु जीवन को बनाए रखन है।
आयुर्वेद के प्रमुख बिंदुः
त्रिदोष सिद्धांतः वात, पित्त और कफ
• जड़ी-बूटियों और औषधियों का उपयोग
• शरीर, मन और आत्मा का संतुलन
• स्वास्थ्य के लिए दिनचर्या और आहार संबंधी नियम
आयुर्वेद यह सिखाता है कि जीवन का उद्देश्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं बलि मानसिक और आत्मिक शांति भी है। यह शास्त्र जीवन के हर पहलू में स्वास्थ्य औ संतुलन की खोज पर आधारित है।151
यह सम्पूर्ण वैदिक साहित्य केवल धार्मिक कर्तव्यों का मार्गदर्शन ही नहीं करते हैं. बल्कि मानव जीवन के सामाजिक, आध्यात्मिक, और दार्शनिक उत्थान में भी
अद्वितीय योगदान देता है। प्रत्येक सनातनी के लिए इन शास्त्रों का अध्ययन और इनसे प्रेरित ग्रंथों का पठन-पाठन अनिवार्य है, तभी हम धर्म और अधर्म के वास्तविक अंतर को समझ सकेंगे। ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और ऋषि व्यास द्वारा रचित महाभारत हमारे गौरवशाली इतिहास के अदभुत ग्रंथ हैं, जिन्हें हर सनातनी को जीवन में कम से कम एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। जब तक हम अपने अतीत को नहीं समझते-हम कौन थे और क्या बने- तब तक भविष्य को दिशा देने की राह नहीं सुनिश्चित नहीं हो सकती। इसलिए, इन शास्त्रों के अध्ययन को प्राथमिकता दें और भारत को फिर से "विश्व गुरु" बनाने के इस महायज्ञ में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करें।
पुराण
ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण।
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