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अगर सत्संग, कीर्तन, हरि कथा में मन नहीं लगता, तो जाने-

  अगर सत्संग, कीर्तन, हरि कथा में मन नहीं लगता, तो जाने- श्रीतुलसीदासजी महाराज ने कहा है- तुलसी  पूरब पाप ते  हरि चर्चा न सुहात । जैसे ज्वरक...

 
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अगर सत्संग, कीर्तन, हरि कथा में मन नहीं लगता, तो जाने-

श्रीतुलसीदासजी महाराज ने कहा है-

तुलसी  पूरब पाप ते  हरि चर्चा न सुहात ।

जैसे ज्वरके जोरसे  भूख  बिदा  हो  जात ॥

जब ज्वर (बुखार) का जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता । उसको अन्नमें भी गन्ध आती है । जैसे भीतरमें बुखारका जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता, वैसे ही जिसके पापोंका जोर ज्यादा होता है, वह भजन कर नहीं सकता, सत्संगमें जा नहीं सकता।

बंगाल के गांवों में एक बुढ़ा आदमी सरोवरके किनारे मछलियाँ पकड़ रहा था। दो भगवान के भक्तो ने उसे देखा और कहा—‘यह बूढ़ा हो गया, बेचारा भजनमें लग जाय तो अच्छा है ।’ उससे जाकर कहा कि तुम भगवन्नाम- उच्चारण  करो तो, उसे ‘राम’ नाम आया ही नहीं ।वह मेहनत करनेपर भी सही उच्चारण नहीं कर सका । 

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कई नाम बतानेके बाद में अन्तमें ‘होरे-होरे’ कहने लगा । इस नामका उच्चारण हुआ और कोई नाम आया ही नहीं । उससे पूछा गया कि ‘तुम्हें एक दिनमें कितने पैसे मिलते हैं ?’ तो उन्होंने बताया कि इतनी मछलियाँ मारनेसे इतने पैसे मिलते हैं । तो उन्होंने कहा कि ‘उतने पैसोंके चावल हम तुम्हें दे देंगे । तुम हमारी दूकानमें बैठकर दिनभर होरे-होरे (हरि-हरि) किया करो ।’ उसको किसी तरह ले गये दूकानपर । वह एक दिन तो बैठा । दूसरे दिन देरसे आया और तीसरे दिन आया ही नहीं ।

 फिर दो-तीन दिन बाद जाकर देखा, वह उसी जगह धूपमें मछली पकड़ता हुआ मिला । उन्होंने उसे कहा कि ‘तू वहाँ दूकानमें छायामें बैठा था । क्या तकलीफ थी ? तुमको यहाँ जितना मिलता है, उतना अनाज दे देंगे केवल दिनभर बैठा हरि-हरि कीर्तन किया कर ।’उसने कहा—‘मेरेसे नहीं होगा ।’वह दूकानपर बैठ नहीं सका ।  पापीका शुभ काममें लगना कठीन होता है ।

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