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देवप्रयाग की पुराणोक्त कथा महात्म्य-

  देवप्रयाग की पुराणोक्त कथा महात्म्य- देवप्रयाग यह प्रसिद्ध तीर्थ पतितपावनी गंगा और अलकनन्दा के संगम पर ह़ै! उत्तराखंड के पंच प्रयागों , (द...

 
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देवप्रयाग की पुराणोक्त कथा महात्म्य-

देवप्रयाग यह प्रसिद्ध तीर्थ पतितपावनी गंगा और अलकनन्दा के संगम पर ह़ै! उत्तराखंड के पंच प्रयागों , (देवप्रयाग,रुद्रप्रयाग,कर्णप्रयाग,नन्दप्रयाग,और बिष्णुप्रयाग) में परम मंगलकारक माना जाता है ! यह स्थान समुद्र तल से दो हजार (2000) फीट की ऊंचाई पर स्थित है ! इस स्थान की दूरी हरिद्वार से 57 मील है ! उत्तराखंड के अन्य मुख्य तीर्थों ( बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) के मार्ग यहीं से होकर जाते है ! देवप्रयाग से बद्रीनाथ 126 मील, केदारनाथ 93 मील, गंगोत्री 130 मील, और यमनोत्री 113 मील आगे है !

देवप्रयाग में चट्टान काट कर दो कुण्ड बने हुये है ! जो कुण्ड गंगा जी की ओर है उसे ब्रह्मकुण्ड और जो अलकनन्दा की ओर है उसको वशिष्ठकुण्ड कहते है ! इन दोनों ही कुण्डो मे श्रद्धालु स्नान करते है ! यहां पर दो नदिया मिलकर बड़े वेग से बहती है, अत: यहां सावधानी पूर्वक स्नान करना चाहिये ! स्नानघाट से बहुत सी सीढ़ियां चढ़कर कुछ ऊपर आगे एक चट्टान के नीचे श्री रघुनाथ जी का विशाल मन्दिर है ! जो यहां का मुख्य दर्शन स्थान है ! मन्दिर के भीतर श्रीरघुनाथ जी की 6 फीट ऊंची श्याम रंग की पाषाण की मूर्ती है ! मन्दिर के आगे गरुड़ जी की मूर्ति है ! कुछ दूर आगे विश्वेश्वर,दुर्गा जी, क्षेत्रपाल और गढ़वाल राजवंश की कुछ पुरानी सती रानियों के मन्दिर भी बने हुये है !

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पौराणिक कथा र्व काल में जब विष्णु भगवान वामन रूप धरकर राक्षस राज बली से जो उन दिनों इंद्रासन पर विराजमान थे, तीन पग पृथ्वी दान मांगने गए थे ,और महादानी राजा बलि ने उनको दान का संकल्प देकर तीन पग पृथ्वी नापने को कहा था ! तब वामन भगवान ने तीन पग में तीनों लोगों को नाप डाला था ,उस समय उनका जो चरण ब्रह्मलोक में निपतित हुआ उसकी अंगुली के नख से ब्रह्मांड सस्फुटित होकर एक जलधारा निकली जो ब्रह्मद्रव कहलाई , यह जलधारा ब्रह्मलोक से ध्रुवलोक और वहां से सप्तऋषि मंडल में होती हुई भगवान शंकर की जचाओं मे नियंत्रित होती हुयी ,सुमेरू श्रृंग पर बेग के साथ पड़ी, उससे सुमेरु पर्वत दो श्रृंगों मे विभक्त हो गया ,और वह जलधारा भी दो भागों में विभक्त हो गई, एक धारा गंगोत्री होकर भागीरथी नाम से ,एवं दूसरी धारा अल्कापुरी होती हुयी अलकनन्दा नाम से प्रकट हुयी,

 इन्ही दोनों धाराओं के मिलन(संगम) का स्थान यह तीर्थ देवप्रयाग है ! इसका नाम देवप्रयाग होने का कारण यह है कि, एक समय देवशर्मा नाम के मुनि ने यहां पर भगवान बिष्णू की आराधना की थी,तब भगवान बिष्णू ने उन देवशर्मा को यहां पर प्रकट होकर दर्शन दिये थे, और कहा था कि यह क्षेत्र तुम्हारे नाम (देवप्रयाग)से विख्यात होगा ! तभी से इस स्थान में बिष्णू भगवान प्रतिष्ठित हैं! यहां गंगा और अलकनन्दा के संगम पर ब्रह्मा जी ने भी नारायण की स्तुति की थी ,इसी कारण यहां ब्रह्मकुण्ड नाम का तीर्थ हुवा! त्रेतायुग में जब भगवान ने रामचन्द्र का अवतार धारण कर रावण का वध किया था और रावण के ब्राह्मण कुल में होने की वजह से रामचन्देर जी को ब्रह्महत्या का दोष लग गया था ,तब रामचन्द्र जी इस तीर्थ में आकर प्रायश्चित तप करके ब्रह्महत्या दोष से मुक्त हुये थे ! तभी से यहां पर भगवान रामचन्द्र जी ने बैठ कर तपस्या की वहां पर (रघुनाथजी) की प्रतिष्ठा मुनियों के द्वारा हुयी थी, 

यह स्थान बड़ा रमणीय एवं पुण्यमयी है।

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