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मनुष्य जन्म का उद्देश्य -मोक्ष पाना ही मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य है

वेद सनातन धर्म का मूल धर्म ग्रंथ है। जिसके अनुसार मोक्ष ही मनुष्य जीवन का पर उद्देश्य है उसे ही प्राप्त करने के लिए यहां मनुष्य शरीर ईश्वर न...


वेद सनातन धर्म का मूल धर्म ग्रंथ है। जिसके अनुसार मोक्ष ही मनुष्य जीवन का पर उद्देश्य है उसे ही प्राप्त करने के लिए यहां मनुष्य शरीर ईश्वर ने हमें दिया है। वेदों न केवल ईश्वर की आराधना और प्रकृति के नियमों की व्याख्या की गई है, बलि मनुष्य जीवन के उद्देश्य को भी स्पष्ट रूप से बताया गया है। वेदों के अनुसार, मनुष का जीवन एक अद्वितीय और दर्लभ अवसर है, जिसे आत्म-साक्षात्कार, सत्य की खो और मोक्ष प्राप्ति के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। मनुष्य का जीवन भौतिक सु तक सीमित नहीं है बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य आत्मा की उन्नति और ब्रह्म से एकर प्राप्त करना है।

मनुष्य शरीर की दुर्लभता

वेदों में मनुष्य जन्म को अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ और दुर्लभ माना गया है। यह अवसर बार-बार नहीं मिलता, और इसलिए इसे प्राप्त करने के पश्चात इसे सर्वोच्च लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समर्पित करना चाहिए। "ऋग्वेद" में मनुष्य जीवन को विशेष रूप महत्वपूर्ण बताया गया है क्योंकि मनुष्य को विचार करने की क्षमता प्राप्त है। अन्य जीव-जंतु अपनी प्राकृतिक प्रवृत्तियों पर आधारित होते हैं, जबकि मनुष्य सही और गलत का निर्णय कर सकता है और उच्चतर चेतना की ओर अग्रसर हो सकता है।

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - पुरुषार्थ चतुष्टय

वेदों में मनुष्य जीवन के चार प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन किया गया है, जिन्हें पुरुषार्थ चतुष्टय कहा जाता है:

धर्मः धर्म का अर्थ है कर्तव्य, नैतिकता और धार्मिकता। यह वह मार्ग है जो जीवन में सही आचरण का निर्देश देता है। वेदों के अनुसार, धर्म के बिना जीवन अराजक और दिशाहीन हो जाता है। धर्म युक्त आचरण ही जीवन का मूल है।

अर्थः जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक धन और संसाधनों का अर्जन भी आवश्यक है, परंतु इसे धर्म के मार्ग पर चलते हुए प्राप्त करना चाहिए। अर्थ का उपयोग समाज और परिवार की भलाई के लिए किया जाना चाहिए।

कामः यह मानव की इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति से जुड़ा हुआ है. परंतु इसे संतुलित और नियंत्रित तरीके से ही प्राप्त करना चाहिए ताकि जीवन में असंतुलन न हो। मनुष्य की इच्छाएँ अनंत होती हैं, और इन पर

केवल धर्मयुक्त आचरण द्वारा ही अंकुश लगाया जा सकता है। धर्म के मार्ग घर चलते हुए हम अपनी इच्छाओं को संतुलित कर सकते हैं, जिससे जीवन में समरसता और स्थिरता बनी रहती है।

मोक्ष मोक्ष जीवन का अंतिम और सर्वोच्च उद्देश्य है। यह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और आत्मा का परम सत्य से मिलन है। यह तब प्राप्त होता है जब व्यक्ति अपने सांसारिक बंधनों और मोह-माया से मुक्त हो जाता है। मोक्ष का अर्थ होता है मुक्ति अर्थात दुःखों का अत्यंत निवृत्ति हो जाना ही मोक्ष है।

इन चारों पुरुषार्थों में मोक्ष को सर्वोपरि माना गया है, क्योंकि यह आत्मा की मुक्ति और ब्रह्म के साथ एकाकार होने का मार्ग है।

वेदों में सत्य की खोज को सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताया गया है। "सत्यमेव जयते" (सत्य की ही विजय होती है) का सिद्धांत वेदों में गहरे रूप से निहित है। सत्य का अर्थ केवल यथार्थ नहीं, बल्कि वह अंतिम वास्तविकता है जिसे जानना हर मनुष्य का परम कर्तव्य है। "ऋग्वेद" के अनुसार, सत्य की प्राप्ति आत्मज्ञान और ध्यान के माध्यम से हो सकती है। यह सत्य ब्रह्म के स्वरूप का बोध कराता है और मोक्ष की दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है।

आत्मा का परम उद्देश्य - आत्मसाक्षात्कार

वेदों में आत्मा को अजर-अमर और शाश्वत बताया गया है। आत्मा का परम उद्देश्य ब्रह्म (ईश्वर) का साक्षात्कार करना है। "उपनिषदों" में आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का सिद्धांत वर्णित है - "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ)। मनुष्य जीवन का उद्देश्य इस एकत्व की अनुभूति करना है। आत्मसाक्षात्कार के बिना जीवन अधूरा है, और यही मोक्ष प्राप्ति की दिशा में पहला चरण है।

वेदों में कर्म के सिद्धांत को बहुत महत्व दिया गया है। हर व्यक्ति को अपने कर्मों के आधार पर फलों की प्राप्ति होती है, और यही कर्म जन्म-मरण के चक्र को निर्धारित करते हैं। "यजुर्वेद" के अनुसार, व्यक्ति को निस्वार्थ और धर्मानुसार कर्म करना चाहिए, ताकि वह मोक्ष की ओर अग्रसर हो सके। पुनर्जन्म और कर्म का यह चक्र तब समाप्त होता है जब व्यक्ति सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और मुक्ति प्राप्त कर लेता है।6

अहिंसा, सत्य, और करुणा - नैतिक मूल्यों का पालन

वेदों में नैतिक मूल्यों पर विशेष बल दिया गया है। "अहिंसा परमो धर्मः (अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है) का सिद्धांत वेदों और शास्त्रों का मूलभूत सिद्धांत है। अहिंसा के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर करुणा, प्रेम, और शांति का विकास करता है। इसी प्रकार, सत्य और करुणा भी मोक्ष प्राप्ति की दिशा में अत्यंत आवश्यक गुण माने गए हैं। सत्य का पालन, सेवा भाव और दूसरों के प्रति सहानुभूति व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि की ओर ले जाते हैं।

ज्ञान का महत्त्व

वेदों में ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का सबसे महत्वपूर्ण साधन बताया गया है। ऋते ज्ञनान मुक्तिः उपनिषदों में ज्ञान के माध्यम से आत्मा के स्वरूप को जानने और ब्रहा का साक्षात्कार करने का मार्ग बताया गया है। यह ज्ञान केवल बौद्धिक ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मज्ञान है, जो ध्यान, तपस्या, और वेदों के अध्ययन से प्राप्त होता है। वेदों का अध्ययन और उनके ज्ञान को जीवन में उतारना ही व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है।

वेदों में भक्ति का स्थान

हालांकि वेद मुख्यतः ज्ञान और कर्म के मार्ग पर केंद्रित हैं, भक्ति को भी वेदों में विशेष स्थान दिया गया है। "ऋग्वेद" में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और आस्था की महत्ता का वर्णन किया गया है। भक्ति के माध्यम से व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़कर ईश्वर की शरण में आता है और अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में समर्पित करता है। भक्ति से व्यक्ति का हृदय शुद्ध होता है और मोक्ष की प्राप्ति सुगम होती है।

मोक्ष के साधन

वेदों के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के तीन प्रमुख साधन हैं:

ज्ञान योगः आत्मा और ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को जानने का मार्ग।

भक्ति योगः ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण का मार्ग।

कर्म योगः निस्वार्थ और धर्म के अनुसार कर्म करने का मार्ग।

इन तीनों मार्गों का संतुलन ही व्यक्ति को मोक्ष की दिशा में ले जाता है।

वेद अहिंसा, सत्य, और करुणा - नैतिक मूल्यों का पालन

वेदों में नैतिक मूल्यों पर विशेष बल दिया गया है। "अहिंसा परमो धर्मः (अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है) का सिद्धांत वेदों और शास्त्रों का मूलभूत सिद्धांत है। अहिंसा के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर करुणा, प्रेम, और शांति का विकास करता है। इसी प्रकार, सत्य और करुणा भी मोक्ष प्राप्ति की दिशा में अत्यंत आवश्यक गुण माने गए हैं। सत्य का पालन, सेवा भाव और दूसरों के प्रति सहानुभूति व्यक्ति को आत्मिक शुद्धि की ओर ले जाते हैं।

ज्ञान का महत्त्व

वेदों में ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का सबसे महत्वपूर्ण साधन बताया गया है। ऋते ज्ञनान मुक्तिः उपनिषदों में ज्ञान के माध्यम से आत्मा के स्वरूप को जानने और ब्रहा का साक्षात्कार करने का मार्ग बताया गया है। यह ज्ञान केवल बौद्धिक ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मज्ञान है, जो ध्यान, तपस्या, और वेदों के अध्ययन से प्राप्त होता है। वेदों का अध्ययन और उनके ज्ञान को जीवन में उतारना ही व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाता है।

वेदों में भक्ति का स्थान

हालांकि वेद मुख्यतः ज्ञान और कर्म के मार्ग पर केंद्रित हैं, भक्ति को भी वेदों में विशेष स्थान दिया गया है। "ऋग्वेद" में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और आस्था की महत्ता का वर्णन किया गया है। भक्ति के माध्यम से व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़कर ईश्वर की शरण में आता है और अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में समर्पित करता है। भक्ति से व्यक्ति का हृदय शुद्ध होता है और मोक्ष की प्राप्ति सुगम होती है।


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