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मानव जीवन में कष्ट और अशांति का मूल कारण माने जाते हैं। ये पांच क्लेश हैं

पंच क्लेश (पांच क्लेश) योग दर्शन और सांख्य दर्शन में महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं. जो मनुष्य के दुःख और मानसिक क्लेश के कारणों को समझाने के लिए ...


पंच क्लेश (पांच क्लेश) योग दर्शन और सांख्य दर्शन में महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं. जो मनुष्य के दुःख और मानसिक क्लेश के कारणों को समझाने के लिए उपयोग की जाती हैं। "क्लेश" का अर्थ है मानसिक या आध्यात्मिक कष्ट। पतंजलि के योग सूत्रों में पंच क्लेश का उल्लेख किया गया है, जो मानव जीवन में कष्ट और अशांति का मूल कारण माने जाते हैं। ये पांच क्लेश निम्नलिखित हैं:

पंच क्लेशः पांच प्रकार के मिथ्या ज्ञान

"अविद्यास्मिताराग्द्वेषाभिनिवेशः पञ्च क्लेषाः" (योग शास्त्र, साधना पाद ॥3)

अर्थः अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश यह पांच प्रकार के क्लेश हैं, जिन्हें पांच प्रकार का मिथ्या ज्ञान भी कहा जाता है। पंच क्लेश ही मनुष्य के सभी प्रकार के दुखों का कारण है

1. अविद्या (अज्ञान)

यह सबसे प्रमुख क्लेश है, जिसे सभी अन्य क्लेशों का मूल कारण माना जाता है। अविद्या का अर्थ है, जो वस्तु जैसी है, उसे वैसा न जानना और न मानना। इसे "अविवेक" भी कहा जाता है। सांख्य दर्शन के अनुसार, महर्षि कपिल ने इसे प्रकृति, जीवात्मा और ब्रह्म के भेद का ज्ञान न होना बताया है। अविद्या के कारण ही आत्मा संसार के जन्म-मरण चक्र में फंसी रहता है और विभिन्न योनियों में भटकती हुई दुखों का अनुभव करता है। "बंधो विपर्ययात्" अर्थात अविद्या ही बंधन का मुख्य कारण है। महर्षि गौतम ने भी दुःखों का मूल कारण अविद्या को ही माना है।

अविद्या से राग और द्वेष जैसे दोष उत्पन्न होते हैं, जिससे शुभ-अशुभ कर्मों की प्रवृत्ति होती है, जो व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र में फंसा देती है। इसके उदाहरण हैं:

नाशवान शरीर को स्थायी मानना 

कर्म फल सिद्धांत को न मानना

आत्मा, ईश्वर की अनुभूति पर विश्वास न करना

काम, क्रोध आदि से सुख की आशा करना

भोग-विलास को जीवन का सत्य मानना


पंच अविद्या के नष्ट होने से दोष, प्रवृत्ति और जन्म-मरण का क्रम समाप्त हो जाता है औ दुखों का अंत हो जाता है।

2. अस्मिता (अहंकार)

अस्मिता का अर्थ है आत्मा, बुद्धि, मन और शरीर को एक ही मान लेना। 'मैं' और 'मेरा' की भावना या अनुभूति को ही अस्मिता कहा जाता है। क्योंकि आत्मा का संबंध मोक्ष से है, मन का काम से, बुद्धि का धर्म से और शरीर का अर्थ से है। इन चारों को अलग-अलग समझना और पहचानना ही सही ज्ञान है। अस्मिता के कारण व्यक्ति अपने सत्य स्वरूप से भ्रमित होता है और सांसारिक मोह में फंसा रहता है।

3. राग (आसक्ति)

राग का अर्थ है किसी वस्तु या अनुभव के प्रति आसक्ति या आकर्षण। यह तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति सुखद अनुभवों से अत्यधिक जुड़ जाता है और उनसे अलग नहीं हो पाता। राग का अर्थ है, सुख भोगने के बाद उसे पुनः भोगने की इच्छा मनुष्य का चित्त सुख भोग की लालसा में बार-बार आसक्त हो जाता है। सुख-दुखमा के विषय होते हैं, और जिसने मन पर विजय प्राप्त कर लिया, वही सच्चा सुखी है। स के कारण व्यक्ति दुख और असंतोष के चक्र में फंसा रहता है।

4. द्वेष (घृणा)

द्वेष वह घृणा भाव है, जो व्यक्ति के चित्त में तब उत्पन्न होता है जब उसे दुःख त घृणा का अनुभव होता है। दुःख भोगने के पश्चात मन में जो नकारात्मक संस्कार जाते हैं, वही द्वेष हैं। द्वेष मन में कलह, असंतोष और शत्रुता के भाव उत्पन्न करता। जिससे व्यक्ति मानसिक शांति खो देता है।9

5. अभिनिवेश (मृत्यु का भय)

अभिनिवेश का अर्थ है मृत्यु के भय से ग्रस्त रहना। यह भय मनुष्य को जीवन की सत्यता को स्वीकारने नहीं देता और वह मृत्यु को दुःख मानकर जीवन में तनाव का अनुभव करता है। यह क्लेश व्यक्ति के चित्त को सदैव अशांत और भयभीत रखता है।

पंच क्लेश से मुक्ति का मार्ग

जब तक मनुष्य इन पंच क्लेशों से मुक्त नहीं होता, तब तक वह सच्चे सुख की अनुभूति नहीं कर सकता। इन क्लेशों के रहते व्यक्ति सुख-दुख के चक्र में फंसा रहता है। पंच क्लेशों से मुक्ति का एकमात्र उपाय क्रियायोग है, जो तीन मुख्य साधनों पर आधारित है:

1. तप (धर्मपूर्ण कर्म): हर परिस्थिति में धर्म के अनुसार कर्म करते रहना और अधर्म को त्याग देना।

2. स्वाध्याय (शास्त्र अध्ययन): वेद, उपनिषद, भगवद गीता, और

दर्शनशास्त्रों का अध्ययन और सत्य भाषण व उपदेश देने वाले विद्वानों की संगति करना।

3. ईश्वरप्रणिधान (ईश्वर की भक्ति): ईश्वर की भक्ति, स्तुति, और उपासना में मन और आत्मा को समर्पित करना।

केवल इन उपायों से ही व्यक्ति सभी प्रकार के दुखों से मुक्त होकर मोक्ष के परम आनंद को प्राप्त कर सकता है। किसी अन्य सरल मार्ग की लालसा केवल भ्रमित करने वाला है।


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