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असली संपत्ति वह है जिसे धारण करके मनुष्य का अंतःकरण शुद्ध और निर्मल हो जाता है,

 शास्त्रों में बताई गई असली संपत्ति वह है जिसे धारण करके मनुष्य का अंतःकरण शुद्ध और निर्मल हो जाता है, और वह सांसारिक दुखों से मुक्त होकर मु...


 शास्त्रों में बताई गई असली संपत्ति वह है जिसे धारण करके मनुष्य का अंतःकरण शुद्ध और निर्मल हो जाता है, और वह सांसारिक दुखों से मुक्त होकर मुक्ति की ओर अग्रसर होता है। इन संपत्तियों को धारण करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है, और यह उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं। शास्त्रों में बताई गई इन 6 संपत्तियों को धारण करना मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया गया है। ये संपत्तियाँ निम्नलिखित हैं:

1. शम (आत्मसंयम): शम का तात्पर्य है अपने अंतःकरण को धर्म के अनुसार चलाना, पापाचरण का त्याग करना, और मन, वचन, शरीर से किसी को कष्ट न देना। यह आंतरिक शांति और संयम को बनाए रखने की संपत्ति है।

2. दम (इंद्रियों का नियंत्रण): अपनी इंद्रियों को अनुशासित करना और उन्हें बुरे कार्यों से हटा कर शुभ कर्मों में लगाना दम कहलाता है। यह हमें इंद्रिय सुख से ऊपर उठकर सही और धर्ममय मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

3. उपरति (सत्संगति): दुष्ट और गलत कर्म करने वाले लोगों की संगति से दूर रहना उपरति कहलाती है। यह संपत्ति हमें सही मार्ग पर चलने और जीवन में नैतिकता और अच्छाई को धारण करने की प्रेरणा देती है।

4. तितिक्षा (सहनशीलता). सुख-दुख, लाभ-हानि, मान-अपमान, निंदा-स्तुति जैसे द्वंद्धों से ऊपर उठना और उन्हें समान दृष्टि से देखना तितिक्षा कहलाती है। यह संपत्ति हमें धैर्य और संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देती है।

5.श्रद्धा (आस्था): शास्त्रों, वेदों और महापुरुषों द्वारा दिए गए सत्य उपदेशों में अटूट विश्वास करना श्रद्धा कहलाती है। यह संपत्ति हमें ईश्वर और धर्म के प्रति गहन आस्था विकसित करने में सहायक होती है।

6 समर्पण (चित्त की एकाग्रता): अपने मन और चित्त को शांत और एकाग्रकरना, अनावश्यक बातों और हंसी-मजाक से दूर रहना, और स्वयं को ईश्वर की सेवा में समर्पित करना ही समर्पण की संपत्ति है।

इन संपत्तियों को धारण करने से व्यक्ति अध्यात्मिक धनी बन जाता है और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। इसलिए शास्त्रों के अनुसार, मनुष्य को इन्हीं संपत्तियों को प्राप्त करने की लालसा रखनी चाहिए।

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