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आपकी सिद्ध माला अगर टूट जाये तो-जाने सम्पूर्ण माला ज्ञान

siddha-mala-toot-jaye-to-kya-kare आपकी सिद्ध माला अगर टूट जाये तो-जाने सम्पूर्ण माला ज्ञान   मालायें धारण करने की परम्परा प्राचीनकाल से चली ...

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आपकी सिद्ध माला अगर टूट जाये तो-जाने सम्पूर्ण माला ज्ञान


 मालायें धारण करने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है । स्त्रियों के आभूषण के रूप में मालाओं का विशेष महत्त्व रहा है । धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक के रूप में भी असंख्य व्यक्ति विभिन्न प्रकार की मालायें धारण करते हैं । इसके साथ - साथ अन्य समस्याओं के समाधान के लिये अथवा अपने अभिष्ट की प्राप्ति अथवा कामनाओं की पूर्ति के लिये भी विशिष्ट मालाओं को धारण करने की परम्परा रही है । प्राचीनकाल में जब किसी को नजरदोष की समस्या हो जाती थी अथवा किसी को ऊपरी बाधा की समस्या होने की स्थिति में विभिन्न प्रकार की मंत्रपूरित मालायें धारण करवाई जाती थी , तब धारणकर्ता को पर्याप्त लाभ की प्राप्ति होती थी । वर्तमान में भी इन मालाओं के प्रभाव से नज़रदोष की समस्या समाप्त होती है , ऊपरी बाधाओं से भी मुक्ति प्राप्त होती है तथा अभिष्ट की प्राप्ति अथवा कामनाओं की पूर्ति होती है । 

मालायें धारण करने का प्रचलन कब प्रारम्भ हुआ 
 इसके बारे में कोई भी एकमत अथवा एक राय नहीं है । अनेक लोग अलग - अलग कारणों से अलग - अलग समय पर इन मलाओं को धारण करने के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हैं । यहाँ हम प्राचीनकाल में पश्चिमी देशों में ड्रेकूला से सम्बन्धित एक ऐसी घटना के बारे में बताने का प्रयास कर रहे हैं , जब सम्भव है कि पहली बार लोगों को माला धारण करने के बारे में जानकारी प्राप्त हुई । प्राचीनकाल में ऊपरी बाधाओं के रूप में भूत - प्रेत आदि की चर्चायें बहुत अधिक जो सुनने को मिलती थीं । 
पश्चिम देशों में ड्रैकुला के रूप में एक ऐसी शक्ति को देखा गया , दिखने में सामान्य मनुष्य ही लगता था लेकिन वास्तव में वह एक राक्षस के समान था , जो मनुष्य का रक्त पीकर जीवित रहता था । यह ड्रेकुला जितने लोगों का रक्तपान करता था , उतनी ही उनकी आयु एवं शक्ति की वृद्धि होती थी । इनको समाप्त करना अथवा इनसे मुक्ति पाना प्रायः असम्भव समझा जाता था । ड्रेकुला किन्हीं विशिष्ट व्यक्तियों को अपना शिकार बनाया करता था । शिकार का चयन करने के बाद वह उनका रक्तपान करने का प्रयास करता था । चूंकि ड्रेकुला मनुष्य के रूप में होता था , इसलिये अपने शिकार का रक्तपान करने में सफल रहता था । ड्रेकुला रात्रि में ही अपना शिकार करने को निकलता था , क्योंकि रात्रि में उसकी राक्षसी शक्तियां जाग्रत होती थी । एक बार एक ड्रेकुला ने अपने शिकार के रूप में एक स्वी का चयन किया । वह स्त्री उस दिन बाजार से भोजन बनाने के लिये पर्याप्त मात्रा में लहसुन लेकर आयी थी । यह लहसुन उसने अपने कमरे में रखे थे । रात्रि को जैसे ही ड्रेकुला उस स्त्री का रक्तपान करने के लिये कमरे में घुसा , वैसे ही वह घबराकर पीछे की ओर लौट गया । उसने दो - तीन बार कमरे के भीतर आने का प्रयास किया , लेकिन सफल नहीं हुआ । उस स्त्री ने जब ईकुला को देखा तो वह भय से भर गई । उसने भीतर आने का प्रयास  करने पर आने " वाले ड्रेकुला पर पास में रखी हुई एक लहसुन की गाँठ उठाकर फेंकी । लहसुन की गांठ लहसुन लगते ही ड्रेकुला ने चीत्कार मारी और भाग गया । प्रातः इस बारे में जब अन्य लोगों को पता चला , तब यह समझ में आया कि के प्रभाव से डेकला को दूर रखा जा सकता है । तब लोगों ने अपने घरों के दरवाजे पर लहसुन की माला लगानी प्रारम्भ की । कुछ लोगों ने लहसुन की कलियों की माला बनाकर गले में धारण करना प्रारम्भ किया । डेकुला बच्चा एवं महिलाओं को अपना शिकार अधिक बनाता था , इसलिये यह माला विशेष रूप से बच्चों एवं महिलाओं को धारण करवाई जाने लगी । इसका प्रभाव यह रहा कि ड्रेकुला का आतंक कम होता चला गया । अनेक लोगों का यह मानना है कि गले में धारण करने का प्रयोजन इसी समय से प्रकाश में आया । सम्भव है कि माला धारण करने के अन्य अनेक कारण भी हुए होंगे , लेकिन उपरोक्त उदाहरण से इतना तो निश्चित है कि बुरी आत्माओं के प्रभाव से मुक्ति के लिये विशिष्ट प्रकार की माला धारण करने से लाभ मिलता है ।

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पौराणिक पुराणों में वर्णित श्राप की कुछ कथाएं                                                                                                                                 

सम्भव है कि इसके बाद छोटे बच्चों को ऊपरी हवा अथवा बुरी शक्तियों से अथवा नज़रदोष आदि की समस्या से बचाने के लिये ता बीज धारण करवाने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ और आगे चलकर इसी ने माला का रूप ले लिया हो । इसके बाद से ही सम्भवत : स्त्रियों द्वारा सौन्दर्य वृद्धि हेतु माला को आभूषणों के रूप में धारण करना प्रारम्भ किया होगा । स्त्रियों द्वारा आभूषण धारण करने का प्रचलन प्राचीनकाल से रहा है । | वर्तमान समय में आभूषणों के अलावा अनेक प्रकार की मालायें धारण करने का प्रचलन देखने में आ रहा है । यह मालायें आमतौर पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिये अथवा कामनाओं की पूर्ति के लिये धारण की जाती हैं । हिन्दू मानसिकता के अनुसार नवग्रह मनुष्य के जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं । व्यक्ति के जन्म के साथ ही ये ग्रह उसकी जन्मकुण्डली के विभिन्न भावों में स्थापित होते हैं । यही ग्रह समय समय पर अपना शुभाशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं । इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम अथवा समाप्त करने के लिये प्राय : इनके रत्नों को धारण करना ज्योतिषियों द्वारा बताया जाता है । यह रत्न मुख्य रूप से अंगूठी में धारण किये जाते हैं । जो व्यक्ति किसी कारण से अंगूठी धारण नहीं करना चाहते , उन्हें माला के द्वारा धारण करवाया जा सकता है । बच्चों को भी किसी प्रकार का रत्न माला में ही धारण कराया जाता है । अनेक प्रकार के रत्नों एवं रुद्राक्षों की मालायें अधिकांश लोग धारण करते हैं । यहाँ यह जानना आवश्यक है कि इन मालाओं के धारण करने से क्या लाभ मिलते हैं और ये लाभ मिलने के पीछे क्या कारण हैं ? जब भी किसी रत्न अथवा रुद्राक्ष की मालाओं को धारण किया जाता है , तब इन मालाओं का एक छोर हृदय तक आता है । हृदय पर इसका छोर स्पर्श होने के कारण इससे हृदय को बल प्राप्त होता है । अनेक मालाओं में पेन्डेंट के रूप में रुद्राक्ष अथवा रत्नों का प्रयोग किया जाता है । इनका स्पर्श भी हृदय पर होता है ।
 एक अन्य कारण के रूप में मालाओं की रचना गोलाकार में होती है , इससे माला में प्रयोग किये गये रत्न अथवा रुद्राक्ष से उत्पन्न ऊर्जा व्यक्ति के मस्तिष्क को बल प्रदान करती है । विद्वानों द्वारा ऐसा मत है दिव्य सामग्रियों के चमत्कार 17 माना जाता है कि विभिन्न प्रकार की मालाओं से व्यक्ति की समस्यायें दूर होती हैं , क्योंकि मालाओं के प्रभाव से व्यक्ति का हृदय मजबूत होता है , आत्मबल बढ़ता है तथा मस्तिष्क सुचारू रूप से कार्य करने लगता है । विभिन्न देवी - देवताओं की कृपा प्राप्ति के लिये भी साधकों द्वारा उनके चित्रों अथवा छोटे विग्रहों को माला अर्पित की जाती है । ऐसा करने से साधक को अनुभव होता है कि उनका इष्ट उनके साथ ही है ।

 जब माला टूट जाये तो क्या करें ?   

 कभी - कभी विशेष प्रयोजनार्थ धारण की गई माला टूट जाती है । इस प्रकार से माला का टूट जाना प्राय : शुभ नहीं माना जाता । माला के टूटने के साथ ही धारणकर्ता के साथ - साथ परिवार के सदस्य भी किसी अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो जाते हैं । उन्हें लगता है कि माला टूटने से उनकी समस्याओं में वृद्धि होगी अथवा उनके बुरे दिन आने वाले हैं । यहाँ इस बात को स्पष्ट करना आवश्यक है कि मालायें क्यों टूटती हैं अथवा उनके टूटने के क्या कारण हो सकते हैं ? अधिकांशतः हम जो माला धारण करते हैं , वह हमारे लिये एक रक्षाकवच का कार्य करती है ।

 माला धारण करने के बाद सामान्य रूप से कष्टों का निवारण स्वतः होता चला जाता है , लेकिन जब भयंकर समस्या आती है , तो धारणकर्ता की रक्षा करने अथवा उसे अनष्टि से बचाने के लिये कई बार माला टूट जाती है , ऐसा इसलिये होता है कि जो माला आपने अपनी रक्षा के लिये धारण की है , वह आप पर आने वाली विपत्ति को अपने ऊपर ले लेती है ताकि आप उस विपत्ति से बच सकें अर्थात् धारण की गई माला आपकी रक्षा के प्रयास में ही टूटती है । यदि माला न टूटे , तो हो सकता है कि धारणकर्ता को अनेक समस्याओं अथवा कष्टों का सामना करना पड़े , हो सकता है कि उसे भारी अनिष्ट के कारण शारीरिक , पारिवारिक , आर्थिक अथवा अन्य प्रकार की समस्या का सामना करना पड़े । इसे हम दूसरे रूप में समझें , तो ठीक रहेगा ।

 जिस व्यक्ति को आपने अपनी रक्षा के लिये रखा हुआ है , उस व्यक्ति का प्रयास यही रहता है कि किसी भी प्रकार की समस्या आपको न हो । जब कोई शत्रु आपको हानि देने का प्रयास करने के लिये आप तक आता है , तब उसे रोकने का कार्य वही व्यक्ति करेगा , जिसे आपने अपनी सुरक्षा के लिये रखा है । कई बार रक्षा करते हुए वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है , लेकिन आपका अनिष्ट नहीं होने देता है । मालाओं की भी यही स्थिति बतायी गयी है , इसलिये आप जब भी कोई माला धारण करते हैं और वह अनायास टूट जाती है , तो अपने मन में किसी आशंका अथवा भय को पनपने न दें , क्योंकि माला आपको किसी अनिष्ट से बचाने के लिये ही टूटी है ।

 जो माला टूट गई है , उसका क्या किया जाये ?

आपको यह विचार करना चाहिये कि आप पर कोई भी आने वाली सम्भावित समस्या टल गई है । ऐसे में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि जो माला टूट गई है , उसका क्या किया जाये ? इसका उत्तर यही है कि जो माला टूट गई है , उसे समेटकर आप उससे सम्बन्धित मन्दिर में अर्पित कर दें अथवा जल में प्रवाहित कर दें । माला में यदि कोई मूल्यवान रत्न अथवा धातु का प्रयोग किया गया है , तो इस माला का निर्माण पुनः करवायें । माला का पुनः निर्माण करके अथवा करवाकर इसे पुनः निश्चित मुहूर्त में  धारण करे ।। 

आपकी सिद्ध माला अगर टूट जाये तो फिर किसी शुभ  दिवस पर अथवा किसी शुभमुहूर्त में पहले की भांति विधि - विधान से , पूजा आदि करने के बाद श्रद्धापूर्वक धारण कर लें । प्राचीनकाल से ही विभिन्न सम्प्रदायों में अपने - अपने देवी देवताओं से सम्बन्धित मालाओं को धारण करने का प्रचलन रहा है । ऐसा करके वे अपने इष्ट से सामिप्य जोड़ने का प्रयास करते दिखाई देते थे । बाद में यही मालायें उनकी धार्मिक परम्पराओं के साथ जुड़ती चली गई । मालाओं के संदर्भ में यह देखा जा सकता है कि इनका प्रचलन धार्मिक , कामनाओं की पूर्ति अथवा समस्याओं के समाधान अथवा मुक्ति हेतु अधिक किया जाता रहा है । बाद में कहीं - कहीं पर मालाओं का प्रयोग सौन्दर्य सामग्री के रूप में भी किया जाने लगा ।

 वर्तमान समय में मालाओं का प्रयोग विभिन्न रूपों में और लगभग सभी सम्प्रदायों में दिखाई देने लगा हैं । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मालायें धारण करने की परम्परा लगभग समस्त सम्प्रदाय के लोगों में समान रूप से बनी हुई थी । यहाँ हम आपको अनेक प्रकार की विशिष्ट मालाओं के बारे में जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं । ये मालायें जहाँ अनेक प्रकार की समस्याओं को दूर करने में सहायता करती हैं , वहीं इनसे अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । इनके लिये विशेष रूप से रत्न एवं रुद्राक्षों का प्रयोग किया जाता है । इसके साथ - साथ विशिष्ट विधि द्वारा निर्मित पेन्डेंट का प्रयोग भी किया जाता है । इन मालाओं में प्रयुक्त रत्न अथवा रुद्राक्ष अथवा पेन्डेंट समस्याओं को दूर करने में सक्षम होते हैं । इन्हें धारण करने से धारणकर्ता की अनेक कामनायें भी पूरी होती हैं । इन मालाओं को धारण करने का विशेष शुभ मुहूर्त और विशेष विधि होती है , उन्हीं के अनुरूप इन मालाओं को धारण करें । समस्याओं के समाधान अथवा कामनाओं की पूर्ति अथवा अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिये 

धारण की जाने वाली मालायें प्राय : दो प्रकार की होती हैं । इसमें पहले प्रकार की वे मालायें आती हैं , जो ग्रह की शान्ति हेतु उस ग्रह के कारक रत्न द्वारा निर्मित होती है जैसे कि मंगल का बल बढ़ाने के लिये मूंगा माला अथवा शनि शान्ति के लिये नीलम की माला धारण की जा सकती है । भगवान शिव की प्रसन्नता के लिये रुद्राक्ष माला धारण करने का प्रचलन है । दूसरे प्रकार में ऐसी मालायें आती हैं जिन्हें किसी विशेष प्रयोजन को सिद्ध करने के लिये विशेष रूप से निर्मित किया जाता है । ऐसी मालाओं में एकाधिक रत्नों अथवा रुद्राक्षों का प्रयोग किया जाता है । उदाहरण के लिये नवग्रह शान्ति के लिये एक ऐसी माला तैयार की जाती है , जिसमें सभी नौ ग्रहों के रत्नों का प्रयोग किया जाता है । नवग्रह माला यदि रुद्राक्षों से बनवाई जाती है तो इसमें एकमुखी ( काजूदाना ) से लेकर नौमुखी रुद्राक्षों का प्रयोग किया जाता है । इसी प्रकार से लक्ष्मीकृपा प्राप्ति के लिये महाधनलक्ष्मी माला अथवा केमद्रुम दोष निवारक माला का निर्माण करवाया जाता है । यह मालायें विशेष रूप से हमारे  ज्योतिष  संस्थान के द्वारा विधि - विधान से तैयार करवाई जाती हैं ।

                                                                           साभार लेख दिव्य ज्योतिष सामग्री ग्रन्थ से

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