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पारद शिवलिंग और शालग्राम- -पूजन का विशेष महत्त्व क्यों?paarad-shivaling-aur-shaalagraam-poojan-ka-vishesh-mahattv-kyon?

  पारद शिवलिंग और शालग्राम- -पूजन का विशेष महत्त्व क्यों?paarad shivaling aur shaalagraam- -poojan ka vishesh mahattv kyon?  पारद शम्भु-बीज ...

 

पारद शिवलिंग और शालग्राम- -पूजन का विशेष महत्त्व क्यों?

पारद शिवलिंग और शालग्राम- -पूजन का विशेष महत्त्व क्यों?paarad shivaling aur shaalagraam- -poojan ka vishesh mahattv kyon?

 पारद शम्भु-बीज है। अर्थात् पारद (पारा) की उत्पत्ति महादेव शंकर के वीर्य से हुई मानी जाती है। इसलिए शास्त्रकारों ने उसे साक्षात् शिव माना है और पारदलिंग का सबसे अधिक महत्त्व बताकर इसे दिव्य बताया है। पारद का महत्त्व आयुर्वेद ग्रंथों में प्रचुरता से बताया गया है। शुद्ध पारद का संस्कार द्वारा बंधन करके जिस देवी-देवता की प्रतिमा बनाई जाती है, वह स्वयंसिद्ध होती है। वाग्भट्ट के मतानुसार, जो पारदशिवलिंग का भक्तिसहित पूजन करता है, उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंगों के पूजन का फल मिलता है। पारदलिंग का दर्शन महापुण्य-दाता है। इसके दर्शन से सैकड़ों अश्वमेध यज्ञों के करने से प्राप्त फल की प्राप्ति होती है, करोड़ों गोदान करने एवं हजारों स्वर्णमुद्राओं के दान करने का फल मिलता है। जिस घर में पारदशिवलिंग का नियमित पूजन होता है, वहां सभी प्रकार के लौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है। किसी भी प्रकार की कमी उस घर में नहीं होती, क्योंकि वहां ऋद्धि-सिद्धि और लक्ष्मी का वास होता है । साक्षात् भगवान् शंकर का वास भी होता है। इसके अलावा वहां का वास्तुदोष भी समाप्त हो जाता है। प्रत्येक सोमवार को पारद शिवलिंग पर अभिषेक करने पर तांत्रिक प्रयोग नष्ट हो जाता है। 

शिवमहापुराण में शिवजी का कथन है

कोटिलिंगसहस्रस्य यत्फलं सम्यगर्चनात् । तत्फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद् भवेत् ॥

 ब्रह्महत्या सहस्राणि गौहत्यायाः शतानि च । तत्क्षणद्विलयं यान्ति रसलिंगस्य दर्शनात् ॥ 

स्पर्शनात्प्राप्यत मुक्तिरिति सत्यं शिवोदितम् ॥

अर्थात् करोड़ों शिवलिंगों के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी करोड़ गुना फल पारद शिवलिंग की पूजा और दर्शन से प्राप्त होता है। पारद शिवलिंग के स्पर्श मात्र से मुक्ति प्राप्त होती है।




शालग्राम नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने अंडाकार पत्थर, जिनमें एक छिद्र होता है और पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं तथा कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान पड़ी होती हैं, इनको शालग्राम कहा जाता है। 

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शालग्राम रूपी पत्थर की काली बटिया विष्णु के रूप में पूजी जाती है। शालग्राम को एक विलक्षण मूल्यवान पत्थर माना गया है, जिसका वैष्णवजन बड़ा सम्मान करते हैं। पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में शालग्राम न हो, वह घर नहीं, श्मशान के समान है। पद्मपुराण के अनुसार जिस पर में शालग्रामशिला विराजमान रहा करती है, वह पर समस्त तीथों से भी श्रेष्ठ होता है। इसके दर्शन मात्र से ब्रह्महत्या- दोष से शुद्ध होकर अंत में मुक्ति प्राप्त होती है। पूजन करने वालों को समस्त भोगों का सुख मिलता है। शालग्राम को समस्त ब्रह्मांडभूत नारायण (विष्णु) का प्रतीक माना जाता है। भगवान् शिव ने स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्म्य में शालग्राम का महत्त्व वर्णित किया है।प्रतिवर्ष कार्तिक मास की द्वादशी को महिलाएं तुलसी और शालग्राम का विवाह कराती हैं और नए कपड़े, जनेऊ आदि अर्पित करती हैं। हिंदू-परिवारों में इस विवाह के बाद ही विवाहोत्सव शुरू हो जाते हैं।




ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय 21 में उल्लेख मिलता है कि जहां शालग्राम की शिला रहती है, वहां भगवान् श्री हरि विराजते हैं और वहीं संपूर्ण तीथों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। शालग्राम शिला की पूजा करने से ब्रह्महत्या आदि जितने पाप हैं, वे सब नष्ट हो जाते हैं। छत्राकार शालग्राम में राज्य देने की तथा वर्तुलाकार शालग्राम में प्रचुर संपत्ति देने की योग्यता है। विकृत, फटे हुए, शूल के नोक के समान, शकट के आकार के, पीलापन लिये हुए, भग्नचक्र वाले शालग्राम दुःख, दरिद्रता, व्याधि, हानि के कारण बनते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं रखना चाहिए।


शालग्राम पर चढ़े तुलसी पत्र को दूर करने वाले का दूसरे जन्म में स्त्री साथ नहीं देती। शालग्राम, तुलसी और शंख इन तीनों को जो व्यक्ति सुरक्षित रूप से रखता है, उससे भगवान् श्रीहरि बहुत प्रेम करते हैं।

विभिन्न पुराणों (देवीभागवत व ब्रह्मवैवर्त आदि) में शालग्राम शिला के बनने व उसकी पूज्यता का वर्णन है। उसमें कहा गया है कि जालंधर दैत्य की विष्णुभक्त पत्नी वृंदा का छल से सतीत्व भंग करने पर सती वृंदा ने विष्णु को शाप दिया कि वे पाषाण हो जायें। फलस्वरूप श्री विष्णु पाषाणरूप हो गये तथा वृंदा तुलसीरूप वनस्पति हो गयी। विष्णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया कि तुम मेरी भक्त हो, अतः मुझे पत्थररूप विग्रह पर तुम्हारी तुलसी रूप एक पत्र को चढ़ाने पर में अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तों को मन वांछित फल प्रदान करूंगा। ब्रह्मवैवर्त पुराण, शिवपुराण आदि में कहा गया है कि पूर्वजन्म में वृंदा भगवान श्रीकृष्ण की गोपीप्रिया और 'जालंधर' श्रीदामा नामक गोप था।

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