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जय गणनायक सिद्धि विनायक मंगलदायक मोक्ष प्रदाता ।

  श्री   गणेश जय गणनायक सिद्धि विनायक मंगलदायक मोक्ष प्रदाता । हो तुम ही सबके शुभदायक कष्ट हरो हे भाग्य विधाता ।। ऋद्धि औ सिद्धि के स्वाम...

 

श्री गणेश
जय गणनायक सिद्धि विनायक मंगलदायक मोक्ष प्रदाता ।
हो तुम ही सबके शुभदायक कष्ट हरो हे भाग्य विधाता ।।
ऋद्धि औ सिद्धि के स्वामी तुम्हीं हो पिता शुभ लाभ के भवदाता ।
छोड़ि के गोदि माँ गौरी की आओ तुम्हे आज भक्त तुम्हारा बुलाता ।।

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वन्दहु शम्भु भवानी के नन्दन , आनन्द कन्द निकन्द पति जै ।
दीनन दायक ऋद्धि वा सिद्धि के , हे गणनायक मो पे पसीझें ।।
बुद्धि के दाता गजानन आनन , मोरी कुबुद्धि सुबुद्धि कीजै ।
मूषक वाहन छाड़ि विनायक , पूजा में आयके आसन लीजै ।।

श्री देवी जी ध्यानम्

शक्ति स्वरूपा सु मंगलकारिणी , काज सवारती हो सबके माँ ।
होति कृपा जो तुम्हारी रहे तो , बने सब काज न देर लगे माँ ।।
सीता ने पूजा तुम्हारी किया तो , प्रसन्न हुई वर राम मिले माँ।
मेरी भी कामना पूर्ण करो मातु गौरी हम

षोडश मातृका ध्यान
गणनाथ के साथ उमा पदमा , शचि मेधा कृपा कर दीजे सहारा ।
सावित्री विजया जया देवसेना स्वधा करुणामयि माता की धारा ।।
स्वाहा स्वथा लोकमाता धृति शुचि पुष्टि व तुष्टि हरौ महि भारा
आत्मनः कुलदेवता है षोडश , पूर्ण करो शुभ काम हमारा ।

सप्तघृत मातृका
सातहुं विन्दु पे सातहुं माता श्री लक्ष्मी धृति मेधा जी भी आओ ।
स्वाहा सुप्रभा सरस्वती मातु हमें भव सिंधु से पार लगाओ
है वसुधारा सदा वसुधा तल पे करुणामयि धार बहाओ ।
पूजा में आय सनाथ करो माँ भक्त के माथे माँ हाथ लगाओ ।

 

चतुःषष्ठि योगिनी

ज्ञान की दायिनी बुद्धि प्रदायिनी दूर करो मन का अंधियारा ।
मूढ़ हूँ मैं असहाय हूँ मैं जननी ममता का माँ दे दो सहारा ।।
मातु कृपा करि कष्ट हरो अपराध बिसार के आज हमारा ।
देवी तुम्हारी करूँ विनती शरणागत है यह पुत्र तुम्हारा ।।

गंगाजी

हे भय हारिरीण ! हे भवतारिणि शोक विनाशिनी पावनि गंगा ।
शंभुजटा में विराज रही शुभदायिनी मोक्ष प्रदायिनी गंगा ॥
भागीरथी जननी जन की शुचि अमृत धार प्रवाहिनि गंगा ।
कष्ट हरो दुःख दूर करो शुभ दायिनि हे वर दायिनि गंगा ॥

पवनपुत्र हनुमान जी
जय रघुनन्दन है सत वन्दन भाल पे चन्दन की छवि न्यारी ।
सिय के कन्त प्रभू हनुमन्त कृपा करि के सुधि लीजै हमारी ।।
भक्तों की कामना पूर्ण करें जो आज हमारी भी आयी है बारी ।
राम का नाम जपें जो सदा कट जाते हैं संकट भारी से भारी ॥

वरुण देव
वास करहिं मुख में लक्ष्मीपति कण्ठ में वास करें त्रिपुरारी ।
मूल में ब्रह्मा निवास करें मध्य में माताएं मंगलकारी ।।
सागर द्वीप नदी वसुधा सब तीरथ वेद भी है शुभकारी ।
हे वरुण देव विराजो यहाँ दुःख दूर करो विनती है हमारी ॥

शिव जी ध्यानम्
शीश पे गंगा हे कण्ठ भुजंगा हे कोटि अनंग लजावन वाले ।
हाथ त्रिशूल हे नाशक शूल वही डमरू के बजावन वाले ।।
मृगछाल सुशोभित है कटि पे और भक्त की लाज बचावन वाले ।
शंकर की महिमा है अपार ये दानी बड़े हे बड़े भोले भाले ॥

श्री विष्णु ध्यानम्
हाथ में चक्र रहे जिनके अरु शेष की शय्या विराज रहे हैं ।
भक्त का मान सदा रखते निज भक्त का भाव निहार रहे है ।।
ध्यान करें जो सदा इनका उसकी मनसा को सवाँर रहे हैं
हे शालिग्राम ! हे विष्णु चतुर्भुज ! आपको भक्त पुकार रहे है ।।

क्षेत्रपाल ध्यानम्
यज्ञ की रक्षा करें जो सदा और काशी के कोतवाल कहाते ।
भक्तों की कामना पूर्ण करें माता वैष्णों के घाम की शोभा बढ़ाते ॥
कष्ट अमंगल दूर करें कर जोरि के आज हम शीश नवाते ।
हे अष्ट भैरव सुनो विनती हो के आतुर भक्त तुम्हारे बुलाते ॥

नवग्रह ध्यानम्
सूर्य हरें तम कष्ट करें कम चन्द्र बड़े मुद मंगलकारी ।
बुद्धि पवित्र करे बुध नित्य बढ़ावत ज्ञान गुरु सुखकारी ।।
शुचि जीवन शुक्र सदैव करे शनि शोक हरें रवि दृष्टि निहारी ।
राहु रहें गति केतु करें मति दिव्य नवग्रह सोहत भारी ।।

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