Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

khojosale.com

Breaking News:

latest

रूद्राष्टकं

  नमामीशमीशान निर्वाणरूपं , विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं , चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्   ॥ निराकारमोङ्क...

 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् 

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं, गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं, गुणागारसंसारपारं नतोहम् ॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं, मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा, लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा 

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं, भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् 

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं 

न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति ॥

कोई टिप्पणी नहीं